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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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शायर और उर्दू के उस्ताद, ख़्वाजा फ़रीद की काफ़ियों का पद्यात्मक उर्दू अनुवाद भी किया

शायर और उर्दू के उस्ताद, ख़्वाजा फ़रीद की काफ़ियों का पद्यात्मक उर्दू अनुवाद भी किया

असलम अंसारी के शेर

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किसे कहें कि रिफ़ाक़त का दाग़ है दिल पर

बिछड़ने वाला तो खुल कर कभी मिला ही था

जाने वाले को कहाँ रोक सका है कोई

तुम चले हो तो कोई रोकने वाला भी नहीं

दीवार-ए-ख़स्तगी हूँ मुझे हाथ मत लगा

मैं गिर पड़ूँगा देख मुझे आसरा दे

ख़फ़ा हो कि तिरा हुस्न ही कुछ ऐसा था

मैं तुझ से प्यार करता तो और क्या करता

जिसे दरपेश जुदाई हो उसे क्या मालूम

कौन सी बात को किस तरह बयाँ होना है

हमारे हाथ फ़क़त रेत के सदफ़ आए

कि साहिलों पे सितारा कोई रहा ही था

हम को पहचान कि बज़म-ए-चमन-ज़ार-ए-वजूद

हम होते तो तुझे किस ने सँवारा होता

ज़रा सी बात पे क्या क्या फ़साना-साज़ी है

मैं ख़ुद भी चाहता कब था कि दास्ताँ बने

हम ने हर ख़्वाब को ताबीर अता की 'असलम'

वर्ना मुमकिन था कि हर नक़्श अधूरा होता

उड़ा है रफ़्ता रफ़्ता रंग तस्वीर-ए-मोहब्बत का

हुई है रस्म-ए-उल्फ़त बे-विक़ार आहिस्ता आहिस्ता

रग-ए-हर-साज़ ये कहती है कि नग़्मा-तराज़

मुझ को इक सल्तनत-ए-सौत-ओ-सदा चाहिए थी

जू-ए-नग़्मात पे तस्वीर सी लर्ज़ां देखी

लब-ए-तस्वीर पे ठहरा हुआ नग़्मा देखा

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Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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