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ग़ज़ल 19
शेर 22
हो गई शाम ढल गया सूरज
दिन को शब में बदल गया सूरज
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रात आँगन में चाँद उतरा था
तुम मिले थे कि ख़्वाब देखा था
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देखो तो हर इक रंग से मिलता है मिरा रंग
सोचो तो हर इक बात है औरों से जुदा भी
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तू हर इक का है और किसी का नहीं
लोग कहते रहें हमारा चाँद
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ये इंक़िलाब-ए-ज़माना नहीं तो फिर क्या है
अमीर-ए-शहर जो कल था वो है फ़क़ीरों में
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