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भारतेंदु हरिश्चंद्र

1850 - 1885 | बनारस, भारत

हिंदी के नवीकरण के प्रचारक, क्लासिकी शैली में अपनी उर्दू ग़ज़ल के लिए प्रसिद्ध

हिंदी के नवीकरण के प्रचारक, क्लासिकी शैली में अपनी उर्दू ग़ज़ल के लिए प्रसिद्ध

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ग़ज़ल 19

अशआर 20

जाए दिल आप का भी और किसी पर

देखो मिरी जाँ आँख लड़ाना नहीं अच्छा

बोसा लेने देते हैं लगते हैं गले मेरे

अभी कम-उम्र हैं हर बात पर मुझ से झिजकते हैं

गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो

मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में

ये चार दिन के तमाशे हैं आह दुनिया के

रहा जहाँ में सिकंदर और जम बाक़ी

जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है

उसी का सब है जल्वा जो जहाँ में आश्कारा है

रुबाई 2

 

पुस्तकें 3

 

चित्र शायरी 2

 

वीडियो 7

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A Short Profile of Bhartendu Harishchandra

Bharatendu Harishchandra

Bharatendu Harishchandra - father of modern Hindi writers

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