फ़ैयाज़ अहमद की कहानियाँ
अक़्ल-मंद राजा
ये कहानी है जंगल के राजा शेर की। शेर और राजाओं की तरह नहीं था। ये राजा था बड़ा चालाक, बड़ा शातिर। हर काम सोच समझ कर करता, हर फ़ैसला संभल कर लेता। यही वजह थी कि वो बरसों से हुकूमत कर रहा था। कभी-कभार कहीं से अगर बग़ावत की हल्की सी भी चिंगारी उठती, उस पर फ़ौरन
ख़ुशबूदार हलवा
रेल-गाड़ी में सफ़र करने का कुछ अलग ही मज़ा होता है और हर सफ़र में कोई ना कोई दिलचस्प तजुर्बा ज़रूर होता है । मैंने जब जब रेल-गाड़ी से सफ़र किया कोई ना कोई दिलचस्प वाक़िया ज़रूर पेश आया। आज से दो साल क़ब्ल मैं थ्री ए. सी. में सफ़र कर रहा था। मेरे केबिन में
इल्ज़ाम
जंगल से चूहों की फ़ौज शहर की तरफ़ भाग रही थी। चारों तरफ़ अफ़रा-तफ़री का आलम था। कोई चूहा कुछ भी बताने की हालत में नहीं था। सबको अपनी जान की फ़िक्र थी। इस से पहले चूहों को ऐसी कैफ़िय्यत से गुज़रना नहीं पड़ा था। सभी आराम से जंगल में गुज़र-बसर कर रहे थे। शहर
ज़बान किरदार का आईना
पुराने ज़माने की बात है। किसी मुल्क में एक बादशाह था। वो बहुत शरीफ़ और रहम-दिल था। मलिक की रिआया अपने बादशाह से तो बहुत ख़ुश थी मगर वज़ीरों और सिपाहियों से बहुत परेशान थी। बादशाह के पास सब कुछ था फिर भी वो सीधी-सादी ज़िंदगी गुज़ारता था। एक दिन बादशाह
नाम या सज़ा
आज स्कूल में सिर्फ़ एक ही टीचर वक़्त पर पहुँचे थे। उनके अलावा सभी ग़ैर-हाज़िर थे। ये हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ ही था कि बच्चों की हाज़िरी आज तक़रीबन 90 फ़ीसद थी। कुछ बच्चे बरामदे में धींगा-मश्ती कर रहे थे। कुछ क्लास-रूम में उछल-कूद मचा रहे थे। कोई किसी के पीछे
इंटरव्यू
एक दफ़्तर में नौकरी के लिए इंटरव्यू होने वाला था। सुब्ह से ही लोगों का हुजूम दफ़्तर के बाहर जमा था। ऐसा लग रहा था जैसे लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा हो। कहीं पाँव रखने की भी जगह नहीं थी। अनवर भी इंटरव्यू देने वालों में शामिल था। उसकी माली हालत ठीक नहीं थी