फ़ारूक़ इंजीनियर के शेर
पिछ्ला बरस तो ख़ून रुला कर गुज़र गया
क्या गुल खिलाएगा ये नया साल दोस्तो
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बरस रही है उदासी तमाम आँगन में
वो रत-जगों की हवेली बड़े अज़ाब में है
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कुछ तो महफ़ूज़ रखिए सीने में
ज़िंदगानी खुली किताब न हो
इस लिए काटता हूँ ये घड़ियाँ
वक़्त की चाल कामयाब न हो
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