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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Farooq Shamim's Photo'

फ़ारूक़ शमीम

1953 | औरंगाबाद, भारत

फ़ारूक़ शमीम के शेर

वक़्त इक मौज है आता है गुज़र जाता है

डूब जाते हैं जो लम्हात उभरते कब हैं

हैं राख राख मगर आज तक नहीं बिखरे

कहो हवा से हमारी मिसाल ले आए

झूट सच में कोई पहचान करे भी कैसे

जो हक़ीक़त का ही मेयार फ़साना ठहरा

अपने ही फ़न की आग में जलते रहे 'शमीम'

होंटों पे सब के हौसला-अफ़ज़ाई रह गई

धूप छूती है बदन को जब 'शमीम'

बर्फ़ के सूरज पिघल जाते हैं क्यूँ

हिसार-ए-ज़ात से कट कर तो जी नहीं सकते

भँवर की ज़द से यूँ महफ़ूज़ अपनी नाव रख

हर एक लफ़्ज़ में पोशीदा इक अलाव रख

है दोस्ती तो तकल्लुफ़ का रख-रखाव रख

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