Quotes of Fikr Taunsvi
कभी-कभी कोई इंतिहाई घटिया आदमी आपको इंतिहाई बढ़िया मश्वरा दे जाता है। मगर आह! कि आप मश्वरे की तरफ़ कम देखते हैं, घटिया आदमी की तरफ़ ज़्यादा।
कुँवारी लड़की उस वक़्त तक अपना बर्थ-डे मनाती रहती है, जब तक वह हनीमून मनाने के काबिल नहीं हो जाती।
औरत का हुस्न सिर्फ उस वक़्त तक बर-क़रार रहता है, जब तक उसके सना-ख़्वाँ मौजूद हो।
ख़ुदा ने गुनाह को पहले पैदा नहीं किया। इंसान को पहले पैदा कर दिया। यह सोच कर कि अब ये ख़ुद-ब-ख़ुद गुनाह पैदा करेगा।
हम वादा करते हैं, तो किसी उम्मीद पर। लेकिन जब वादा पूरा करने लगते हैं, तो किसी डर के मारे।
हमें दुश्मन से झगड़ने के बाद ही वो गाली याद आती है, जो दुश्मन की गाली से ज़्यादा करारी और तीखी थी।
उस औरत की किसी भी बात का ए'तिबार न करो, जो ख़ुदा की क़सम खा कर अपनी उम्र सही बता देती है।
औरत अपनी सही उम्र इसलिए नहीं बता सकती, क्योंकि उसे उसकी जवानी याद रहती है, उम्र नहीं।
बीवी आपको घर का कोई काम करने के लिए उठाएगी, मगर करने नहीं देगी। क्योंकि उस काम का क्रेडिट वह ख़ुद लेना चाहती है।
उम्र औरत का एक बेश-क़ीमत ज़ेवर है, जिसे वह हमेशा एक डिबिया में बंद रखती है। कभी खोलती नहीं।
सिर्फ़ वही चीज़ खानी और पीनी चाहिए, जिसकी हिदायत आपके अंदर बैठा हुआ डॉक्टर दे।
जवानी, एक बहुत बड़ी ग़लती है। अधेड़ उम्र, एक बहुत बड़ी जद्द-ओ-जहद। बुढ़ापा, फ़क़त माज़रत।
आप सड़क पर तेज़-रफ़्तार से आते हुए ट्रक से इतना नहीं घबराते, जितना उस हादिसे के तसव्वुर से घबराते हैं जो ट्रक गुज़रने के बाद पेश नहीं आता।
सरमाया-दार का गुनाह उसी तरह ख़ूबसूरत होता है, जैसे उसकी कोठी का मेन गेट ख़ूबसूरत होता है।
जब आप घर में किसी को गंदी गाली निकालते हैं, तो आपका बच्चा उसे मातृ भाषा का हिस्सा समझ कर अपना लेता है।
आप दिमाग़ी तौर पर अलील हैं, तो जिस्मानी मज़बूती से आप शिफ़ा नहीं पा सकते।
जम्हूरियत... सरमाया-दारी का वह ख़ुशनुमा हथियार है, जो मज़दूर को कभी सिर नहीं उभारने देता।
आपने घर का कोई बेहतरीन काम कर दिया, तो इसकी दाद आपकी बीवी से भी नहीं मिलेगी, जो आपसे बेहतर काम की तवक़्क़ो नहीं रखती थी।
मर्द का दिल एक कमरा है, जिसमें सिर्फ़ एक औरत रह सकती है। लेकिन दिल के आस-पास बहुत से ऐसे कमरे भी होते हैं, जो कभी ख़ाली नहीं रहते।
औरत का ज़ेवर चोरी हो जाएगी तो वो अपने ख़ावंद तक को चोर कहने से बाज़ नहीं आएगी।
इंसान वो खाने के लिए मुज़्तरिब हो जाता है, जिसे खाने के लिए उसे मना कर दिया गया हो।
बे-क़सूर आदमी जब तक क़सूर ना करे, सरमाया-दाराना समाज में कोई फ़ायदा नहीं उठा सकता।
ख़ूबसूरत औरत के मश्वरा से बिल्कुल बर-अक्स अमल करो। नतीजा ख़ुश-गवार निकलेगा।
कई लड़कियाँ एक सिगरेट की तरह होती हैं। सिगरेट को सुलगाओ, कश खींचो और मुँह का मज़ा ख़राब करो... मगर वह लड़कियाँ आपकी ख़राबी पर बड़ी मुतमइन हो जाती हैं।
बदनीयत आदमी को नेक मश्वरा देना ऐसा है जैसे डॉक्टर अपने ग़रीब मरीज़ को यह मश्वरा देता है कि इस दवाई के साथ रोज़ाना ढाई सौ ग्राम अंगूर भी खाया करो।
तातील के दिन अगर आप मामूल से हट कर नहीं जीते, तो तातील को ज़ब्ह करते हैं, दूसरे दिनों की तरह।
अंग्रेज़ हमेशा उस मुलाज़िम को पसंद करता है, जिसमें अक़्ल कम और इताअत ज़्यादा हो।
जो आदमी सत्तर बरस की उम्र में भी क़हक़हा लगा सकता है वह चालीस साला आदमी से भी ज़्यादा जवान है, जो एक लतीफ़ा भी न सुन सकता है, न सुना सकता है।
अगर आप अपनी हिमाक़त को यक़ीनी बनाना चाहते हैं, तो दानिशमंदों की महफ़िल में जाकर बैठ जाइए, जो आपसे कम अहमक़ाना बातें नहीं करते।
एक आज़ाद आदमी फ़क़त उस वक़्त तक आज़ाद है, जब तक वह अपनी ज़िंदगी को मंसूबा-बंदी का ग़ुलाम नहीं बना लेता।
साँप ने आदम को दाना-ए-गंदुम खिलाने का मश्वरा इस डर से दिया था कि कहीं आदम साँप को ही न खा जाएँ।
सियासी लीडर की फ़ितरत में निस्फ़ दरोग़-बयानी भी होती है, जिसे वह पूरी सच्चाई के तौर पर मनवा लेता है।
अगर किसी मसअले पर दस आलिम-ओ-फ़ासिल हज़रात मुत्तफ़िक़ हो जाएँ, तो उस इत्तिफ़ाक़-ए-राय में ज़रूर कोई ग़लती होगी।
जिस औरत की उम्र अपने ख़ाविंद की उम्र से बीस साल ज़्यादा हो, वह अपने ख़ाविंद को ‘वालिद साहब’ भी कह सकती है।
दियानतदारी से बहुत रसीला फल मिलता है, मगर कुछ लोगों को ये रसीलापन ना-मौज़ूँ लगता है।