फ़िक्र तौंसवी के हास्य-व्यंग्य
कुछ सवाल, कुछ जवाब
सवाल, “सोशलिज़्म के नारे की कितनी अहमियत है?” जवाब, “अमीरों की डाइनिंग टेबल के एक लुक़्मे की।” सवाल, “वो लोग कहाँ गए जो कहा करते थे मुल्क में इन्क़लाब लाएँगे।” जवाब, “वो मुंदरजा ज़ैल मुक़ामात पर मिल जाएंगे।” (1) पब्लिक पार्क में गली सड़ी मूंगफलियाँ
मेरी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह
(पच्चीस साल पहले वालिदैन ने साज़िश करके मेरी शादी कर दी थी। और पच्चीस साल बा’द अहबाब ने साज़िश करके मेरी शादी की पच्चीसवीं सालगिरह मना डाली। इस ‘तक़रीब-ए-सईद’ पर मुझे भी तकरीर करने के लिए कहा गया। ये तहरीरी तक़रीर सिवाए मेरी अह्लिया मोहतरमा के सभों
लुग़ात-ए-फ़िक्री
इलेक्शन, एक दंगल जो वोटरों और लीडरों के दरमियान होता है और जिसमें लीडर जीत जाते हैं, वोटर हार जाते हैं। इलेक्शन प्टीशन, एक खंबा जिसे हारी हुई बिल्ली नोचती है। वोट, चियूंटी के पर, जो बरसात के मौसम में निकल आते हैं। वोटर, आँख से गिर कर मिट्टी