और सांई बाबा ने कहा
मुँह-माँगी मौत
एक नहीफ़-ओ-नज़ार बूढ़ा झीलंगी चारपाई पर पड़ा कराह रहा था और कह रहा था, “आह न जाने मौत कब आएगी?” इतने में मौत आगई और बोली, “बाबा मैं आगई हूँ।” बूढ़ा नाराज़ हो कर बोला, “बड़ी बेवक़ूफ़ हो। मैंने तो अपने लड़के को बुलाया था कि वो आकर मेरी ख़बरगीरी करले।”
मौत ने कहा, “बाबा, मैं तुम्हारा लड़का हूँ।”
दो दोस्त, दो दुश्मन
जंगल में जाते-जाते साईं बाबा ने देखा कि एक कोड़ियाला सांप मरा पड़ा है। चंद क़दम के फ़ासले पर एक नेवला भी मरा पड़ा था। साईं बाबा ने नेवले को उठाया और सांप के पास लाकर रख दिया। उन दोनों की बाँहें एक दूसरे की गर्दन में डाल दें। बिल्कुल दो दोस्तों की तरह वो एक दूसरे की गर्दन में बाँहें डाले पड़े रहे।
चंद मिनट तक साईं बाबा उन्हें देखता रहा। अचानक उन दोनों में एक हरकत सी पैदा हुई। दोनों में ज़िंदगी की लहर दौड़ गई। दोनों ने आँखें खोल कर एक दूसरे की तरफ़ देखा, और फिर दोनों आग बगूला हो कर एक दूसरे से लड़ने लगे।
कामयाब यतीमख़ाना
यतीमख़ाने के इंचार्ज ने मुझे बताया, “इन सब बच्चों के माँ-बाप मर चुके हैं।”
“अफ़सोस।”
“अफ़सोस की कोई बात नहीं। हम उन्हें पालें पोसेंगे। उन्हें काम सिखाएँगे, उन्हें बारोज़गार बनाएंगे, उनकी शादियाँ करेंगे। उनके बच्चे पैदा होंगे।”
“और फिर उनमें से कइयों के बच्चे यतीम होजाएंगे। अफ़सोस।”
“अफ़सोस की कोई बात नहीं क्योंकि हम उन्हें फिर यतीमख़ाने में दाख़िल कर देंगे। आप शायद नहीं जानते कि हमारा यतीमख़ाना गुज़श्ता एक सौ साल से क़ायम है और बड़ी कामयाबी से चल रहा है।”
हुस्न की क़ीमत
एक मशहूर-ओ-मारूफ़ मुसव्विर ने एक हसीना की तस्वीर बनाई। उस हसीना के ख़द्द-ओ-ख़ाल में इतनी नज़ाकतें और जिस्म में इतनी क़ौसें थीं कि तस्वीर देखते ही हर शख़्स उसे ख़रीद लेता और अपने सीने से लगा लेता। और जब ये तस्वीर एक बैन-उल-अक़वामी नुमाइश में पेश की गई तो उसे आला दर्जे का हुस्न क़रार दिया गया... और वो तस्वीर एक भिकारन की थी जो आज भी सड़कों पर एक एक पैसे की भीक माँगती फिरती है।
हसीन कौन?
मैंने चकोर से पूछा, “दुनिया में सबसे ज़्यादा हसीन कौन है?” उसने कहा, “चांद।” मैंने एक सेठ से पूछा, “सबसे ज़्यादा हसीन कौन है?” वो बोला, “रुपया।” मैंने एक तवायफ़ से पूछा, “सबसे ज़्यादा हसीन कौन है?” वो बोली, “गाहक।” मैंने एक नन्हे से बच्चे से पूछा, “सबसे ज़्यादा हसीन कौन है?” कहा, “दूध।”
और फिर मैंने एक पागल से पूछा, “बताओ तुम्हारे ख़्याल में सबसे ज़्यादा हसीन कौन है?” उसने हंसकर कहा, “ख़ुद मैं।”
हसीना की निगाहें
हसीना ने दरख़्त की तरफ़ देखा तो दरख़्त पर फूल खिल उठे। हसीना ने एक कार की तरफ़ देखा तो मार्केट में कारों का नर्ख़ दोगुना हो गया। हसीना ने एक पत्थर की तरफ़ देखा तो वो संगमरमर बन कर महल में जा लगा। और हसीना ने शराब की बोतल की तरफ़ देखा तो उस की परस्तिश शुरू कर दी गई।
लेकिन हसीना ने जब एक इंसान की तरफ़ देखा तो उस इंसान को इंसानों ने फांसी पर लटका दिया।
बहादुर आशिक़
एक मियां-बीवी एक आशिक़ाना फ़िल्म देखकर आए और घर आकर दोनों फ़िल्म के हीरो हीरोइन की तरह आशिक़ाना मकालमे बोलने लगे। मियां ने कहा, “प्यारी, ये चांद और सितारे गवाह हैं कि मैं तुम्हारी ख़ातिर अपनी जान तक दे दूँगा।” बीवी ने कहा, “प्यारे मैं तुम्हारी ख़ातिर सारे समाज को ठुकरा दूंगी और तुम्हारे पास आजाऊँगी।”
और फिर दोनों ने बैक आवाज़ कहा, “ये मकालमे तो शादी से पहले के हैं।”
क़हत का मुक़ाबला
शहर में ग़िज़ाई क़हत पड़ गया। मोअज़्ज़िज़ीन शहर ने बड़ी तेज़ी से ग़ल्ले के स्टाक करलिये। लोगों में हाहाकार मच गई। अनाज का दाना दाना ब्लैक मार्केट में मिलने लगा। फ़ुटपाथों पर चलते चलते फ़ाक़ाकश अचानक गिर पड़ते और दम तोड़ देते। हाथ दुआओं को उठते मगर नक़ाहत से लटक कर रह जाते।
और फिर शहर के बड़े हाकिम ने सूरत-ए-हाल का मुक़ाबला करने के लिए एक रिलीफ़ कमेटी बनाई और उस कमेटी में जितने मेंबर लिए गए वो सब ग़ल्ले के ब्लैक मार्केटिए थे।
बेरूह फ़िक़रे
एक मुअज़्ज़िज़ आदमी ने अपने घर के अंदर एक निहायत ख़ूबसूरत फ्रे़म में मुंदरजा ज़ैल माटो लिख कर लटका रखा था,
“बेईमान आदमी जहन्नुम में जाता है।”
“अमानत में ख़यानत करना गुनाह है।”
“किसी का हक़ छीनना बुज़दिली है।”
और जिस आर्टिस्ट ने ये माटो लिखा था, वो अपनी उजरत हासिल करने के लिए उम्र भर रोता रहा।
शहर के कुत्ते
शहर के दो मोअज़्ज़िज़ीन क्लब में बैठे मयनोशी में मसरूफ़ थे। एक मुअज़्ज़िज़ शहर ने लहराते हुए कहा, “ऐ अगर मैं चाहूँ तो शहर के तमाम कुत्ते तुम पर छोड़ सकता हूँ।” दूसरा मुअज़्ज़िज़ बोला, “मगर कुत्ते लाओगे कहाँ से?”
“मैं शहर के तमाम कुत्ते ख़रीद लूँगा।”
“वो तो पहले ही ख़रीद चुका हूँ।”
“किस लिए?”
“तुम पर छोड़ने के लिए।”
अनोखा मरीज़
शहर के मशहूर-ओ-मारूफ़ डाक्टर चतुर्वेदी के मतब में एक हट्टा कट्टा मरीज़ दाख़िल हुआ और डाक्टर के क़रीब पड़ी हुई एक कुर्सी पर बैठ गया और बोला, “डाक्टर साहब, सुना है, आप इंसान की हर बीमारी का इलाज करते हैं।”
“आपने ठीक सुना है।”
मरीज़ बोला, “डाक्टर साहब मुझे एक निहायत ख़ौफ़नाक और कुहना मर्ज़ है। आप मेरा इलाज कर दीजिए।” डाक्टर ने कहा, “फ़रमाइए, क्या मर्ज़ है आपको?”
यह सुनकर हट्टे कट्टे मरीज़ ने मुँह पर एक घूँसा जमाया, मेज़ पर पड़ा हुआ डाक्टर का हैट उठाया और हँसते हुए बाहर चला गया।
साइंसदाँ
साइंसदाँ उछलता कूदता हुआ पुनी लेबारेट्री से अचानक बाहर निकल आया और जोश-ए-मुसर्रत में अपने नन्हे से बच्चे के दोनों कँधों को पकड़ कर बोला, “नन्हे नन्हे, तुम ये जान कर ख़ुश होगे कि मैंने आख़िर वो हैरतअंगेज़ चीज़ ईजाद करली है।” बच्चा बोला, “क्या चीज़?” साइंसदाँ ने कहा, “एक ऐसी चीज़ जिससे मैं दुनिया के हर आदमी को एक सेकेंड में मार सकता हूँ।”
बच्चा ख़ुश हो कर बोला, “तो डैडी पहले मुझे मार कर दिखाओ उस चीज़ से।”
टीचर
एक टीचर हर रोज़ गधे पर सवार हो कर मदरसे जाया करता था। एक दिन हस्ब-ए-मामूल जब वो गधे पर सवार हो कर जा रहा था तो गधे ने कहा, “क्यों जी, आप हर रोज़ मदरसे में क्या करने जाते हैं।” टीचर बोला, “मैं लड़कों को इल्म सिखाने जाता हूँ।” गधा बोला, “इल्म सीखने से क्या फ़ायदा होता है?” टीचर ने कहा, “इल्म सीखने से अक़्ल आजाती है।” गधा कहने लगा, “तो फिर मास्टर जी मुझे भी अक़्ल सिखा दो।”
टीचर ने नफ़ी में सर हिलाते हुए कहा, “नहीं, अगर मैंने तुम्हें अक़्ल सिखा दी तो फिर सवारी किस पर करूँगा?”
लीडर
स्टेज की कुर्सी पर बैठते हुए लीडर ने निहायत जज़्बात अंगेज़ लहजे में कहा, “प्यारे हाज़िरीन, मेरी ज़िंदगी का वाहिद मक़सद अवाम की ख़िदमत करना है। मेरा हर क़दम अवाम के मुफ़ाद ही के लिए उठता है। मैंने जितनी क़ुर्बानियां कीं वो सिर्फ़ आप लोगों के लिए कीं और मुझे फ़ख़्र है कि मैं अवाम की तमन्नाओं का अक्स बन गया हूँ। क्या आप में किसी को भी मेरे इस बात पर शक है?”
हाज़िरीन में से एक शख़्स उठा और बोला, “हाँ, मुझे शक है।”
ये सुनकर लीडर ने उस शख़्स को स्टेज पर बुला लिया और अपने साथ वाली कुर्सी पर बिठा दिया।
क्लर्क
क्लर्क की बीवी ने सातवें बच्चे को जन्म देते वक़्त दर्द से कराहते हुए कहा, “आह, बच्चे बढ़ते जा रहे हैं मगर हमारी तनख़्वाह नहीं बढ़ रही।”
क्लर्क ने अपनी बीवी को तसल्ली देते हुए कहा, “हाँ, मगर बच्चे भगवान देता है और तनख़्वाह दफ़्तर देता है।”
वकील
अदालत में एक वकील बतौर मुल्ज़िम पेश किया गया। जज ने उससे कहा, “निहायत अफ़सोस की बात है कि आपने क़ानूनदां हो कर भी क़ानून तोड़ा है।”
वकील ने संजीदगी से जवाब दिया, “माई लार्ड, क़ानून तोड़ने से पहले मैंने क़ानून की किताब अच्छी तरह पढ़ ली थी और ये तसल्ली करली थी कि इस क़ानूनशिकनी के तोड़ के लिए कौन सा क़ानून मौजूद है।”
गदागर
एक पढ़ा लिखा गदागर गदागरों का लीडर बन गया। चूँकि उसका ज़्यादातर वक़्त गदागरों की तंज़ीम और उनके हुक़ूक़ की हिफ़ाज़त पर सर्फ़ होने लगा। इसलिए गदागरों की तरफ़ से उसका माहाना वज़ीफ़ा मुक़र्रर कर दिया गया। हर गदागर उस वज़ीफ़ा के सिलसिले में हर महीने एक रुपया अदा किया करता।
एक मर्तबा गदागरों के लीडर से किसी ने पूछा, “उस्ताद, ये अच्छा हुआ कि तुमसे गदागरी छूट गई और अब तुम एक मुअज़्ज़िज़ शहरी बन गए हो।” वो ज़हरीले तबस्सुम के साथ बोला, “गदागरी कहाँ छूटी है? मैं अभी तक भीक मांगता हूँ। पहले राहगीरों से मांगा करता था, अब गदागरों से मांगता हूँ।”
एडिटर
अख़बार के एडिटर से उसके एक दोस्त ने पूछा, “क्या ये सही है कि तुम्हारी मालूमात बेहद वसीअ हैं?” एडिटर फ़ख़्र से बोला, “हाँ।” दोस्त ने फिर पूछा, “और क्या ये भी सही है कि तुम्हें दुनिया की ख़बरों का इल्म रहता है।”
“हाँ।”
“माफ़ करना, तुम्हें दुनिया की ख़बरों का इल्म है मगर अपने बारे में एक छोटी सी ख़बर का भी इल्म नहीं?”
“वो क्या?”
“वो ये कि तुम्हारे सर के बाल उड़ गए हैं।”
बढ़ई
बढ़ई ने एक कुर्सी बनाई और बाज़ार में जाकर बेच दी। वो रुपये लेकर बाज़ार में आटा लेने गया। आटा तौलते वक़्त दुकानदार ने डंडी मारी जिस पर बढ़ई को ताव आगया। उसने दुकानदार को बुरा-भला कहा, दुकानदार ने उसे गाली दी, बढ़ई ने मुक्का मार कर दुकानदार का दाँत तोड़ दिया। बढ़ई को गिरफ़्तार कर लिया गया। कई महीने उस पर मुक़द्दमा चलता रहा और आख़िर अदालत ने उसे छः माह की सज़ा दे दी।
जिस जज ने बढ़ई को सज़ा का हुक्म सुनाया वो उसी बढ़ई की बनाई हुई कुर्सी पर बैठा था।
चोर
एक चोर रात को किसी के घर में दाख़िल हुआ। जिस कमरे में दाख़िल हुआ वहाँ अँधेरा था मगर बग़ल के कमरे में रोशनी हो रही थी और अंदर से मियां-बीवी की बातें करने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। मियां कह रहा था, “प्यारी, आज तो हर घर में रोशनी हो रही है, सारा शहर जाग रहा है। इसलिए आज कहीं नक़ब नहीं लगा सका।”
बीवी बोली,“इसका मतलब है आज तुम ख़ाली हाथ लौट आए, कोई भी चीज़ चुराकर नहीं लाए?” मियां बोला, “नहीं नहीं, एक घर में थोड़ा सा मौक़ा मिला तो एक घड़ी मेरे हाथ लग गई जो साथ वाले कमरे में मेज़ की दराज़ में रख आया हूँ।”
मियां-बीवी की ये गुफ़्तगू सुनकर पहले चोर ने मेज़ की दराज़ खोली और घड़ी उठाकर मुस्कुराता हुआ बाहर निकल गया।
शायर
शायर को ख़ुदा के हुज़ूर में पेश किया गया। ख़ुदा ने पूछा, “शायर, तुम चूँकि हमारे ख़ास आज़ाद मनिश बंदे हो, इसलिए तुम ख़ुद ही बताओ कि तुम जन्नत में रहना पसंद करोगे या दोज़ख़ में?” शायर बोला, “जहाँ सामईन की तादाद ज़्यादा हो।”
चुनांचे ख़ुदा ने उसे दोज़ख़ में भेज दिया।
तर्बीयत गाह
नन्हे की माँ नन्हे के अब्बा से झगड़ा कर रही थी।
“नन्हा गालियां बकने का आदी हो गया है, और तुमने उस बदमाश को खुली छुट्टी दे रखी है।” नन्हे के अब्बा ने कहा, “बकवास करती हो तुम। तुम ही उसे उल्लू का पट्ठा बना रही हो।” नन्हे की माँ ने कहा, “औलाद तुम्हारी है। लफ़ंगे की औलाद भी लफ़ंगी बनेगी और क्या बनेगी?” नन्हे के अब्बा ने कहा, “और तुम कौन से शरीफ़ ख़ानदान से आई हो। तुम्हारा बाप भी तो चोर उचक्का ही था।”
और दोनों का नन्हा एक कोने में बैठा हुआ ये नई गालियां सुन रहा था और ज़ेहन में नोट कर रहा था।
आईनों का फ़र्क़
अपनी बीवी को क़द-ए-आदम आईने के सामने खड़े देखकर शौहर ने बड़े मस्ताना लहजे में कहा, “प्यारी, आज तो तुम राजा इंद्र के अखाड़े की परी मालूम हो रही हो।” बीवी ने ताना देते हुए कहा, “कल तो तुम कह रहे थे कि तुम चुड़ैल हो, डायन हो।”
“कल तुम मेरे सामने खड़ी थीं मगर आज आईने के सामने खड़ी हो।”
बेनियाज़ जोड़ा
सरकार की तरफ़ से मुनादी कराई गई, “मुल्क की आबादी ख़तरनाक हद तक बढ़ रही है। इसलिए सरकार मुल्क के हर मियां-बीवी से अपील करती है कि वो कम से कम बच्चे पैदा करें।”
एक जोड़े ने बाज़ार में चलते चलते ये मुनादी एक कान से सुनी और दूसरे से उड़ा दी क्योंकि उनके हाँ गुज़श्ता बीस साल से एक भी बच्चा पैदा नहीं हुआ था।
बीवी का भाग्य
बीवी आँसुओं, हिचकियों और सिसकियों के दरमियान कह रही थी, “मैं कहती हूँ इस घर में आकर तो मेरे भाग ही फूट गए। आख़िर यहाँ आकर मुझे क्या मिला?”
नीचे सड़क पर से एक ख़्वांचे वाले की आवाज़ आई, “पापड़ करारे।”
भगवान का फ़ैसला
मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ती के सामने एक औरत आँखें बंद किए प्रार्थना कर रही थी, “ऐ मुरली मनोहर, मेरे ख़ाविंद को बुद्धि अता कर, ताकि वो दूसरों के बहकावे में न आया करे।”
भगवान की मूर्ती जैसे बोल उठी, “अभी दस मिनट पहले ही तेरा ख़ावंविंद भी मुझसे यही कह गया है।”
तालीम का मक़सद
एक ख़ुदातरस और एक नेक वकील साहब हर रोज़ एक तवायफ़ के हाँ जाते और रात गए लौट आते। मैंने एक दिन उनसे पूछा, “आप हर रोज़ तवायफ़ के हाँ क्यों जाते हैं? एक मुहज़्ज़ब आदमी के लिए यह बात निहायत नामुनासिब है।”
वो गर्दन अकड़ा कर बोले, “मैं उससे तहज़ीब सीखने जाता हूँ।”
बेटे का बाप
तवायफ़ के नन्हे से मासूम बच्चे ने एक दिन माँ से पूछा, “माँ ये हर रोज़ हमारे घर में इतने आदमी क्यों आजाते हैं?”
तवायफ़ ने एक सर्द आह भर कर कहा, “बेटा, मैं ख़ुद उन आदमियों को यहाँ बुलाती हूँ, ताकि तुम पहचान सको कि उनमें से तुम्हारा बाप कौन है?”
रंगीन मक़ूले
जो लोग तवायफ़ से नफ़रत करते हैं, तवायफ़ उनसे भी नफ़रत नहीं करती।
जिस समाज में मुहब्बत करना जुर्म हो, वहाँ क़हबाख़ाने खोलना कोई जुर्म नहीं।
तवायफ़ों के लाइसेंसों से जो रक़म वसूल की जाती है, वो अख़लाक़ सुधारने वाली सभाओं पर ख़र्च की जाती है।
ज़ुकाम
एक मर्तबा एक बड़े आदमी को ज़ुकाम हुआ। सात दिन तक सात आला डाक्टर उसका इलाज करते रहे। एहतियात, परहेज़ और इलाज पर सात सौ रुपये ख़र्च हो गए। जब उसे ज़ुकाम से इफ़ाक़ा हुआ तो उसने अपनी सेहतयाबी की ख़ुशी में एक बहुत बड़ी दावत दी। शहर के बहुत से मोअज़्ज़िज़ीन दावत में शरीक हुए। दावत, आर्केस्ट्रा और फ़क़ीरों को ख़ैरात पर एक हज़ार रुपया उठ गया।
क़िस्मत का धनी
एक दिन बड़े आदमी ने एक ज्योत्षी को बुलाकर पूछा, “क्या तुम बता सकते हो कि कल हमारे साथ क्या होगा?” ज्योत्षी ने सितारों का हिसाब लगाकर बताया, “हाँ जनाब, कल आपको दस हज़ार रुपये अचानक मिल जायेंगे।”
और दूसरे दिन बड़े आदमी का कुत्ता मर गया, जो दस हज़ार रुपये में बीमा शुदा था।
पुतली का तमाशा
छोटे आदमी से किसी ने कहा, “ठेरो।” वो ठेर गया। उसके बाद छोटे आदमी से कहा गया, “चलो।” वो चलने लगा, फिर कहा गया, “लौट आओ।” वो वापस आगया।
उससे पूछा गया, “तुमने मेरे हुक्म की तामील क्यों की?”
छोटे आदमी ने कहा, “अगर मैं ये जानता होता कि मैंने आपके हर हुक्म की तामील क्यों की, तो आपके हुक्म की तामील ही क्यों करता?”
गालियों का नर्ख़
छोटा आदमी हाँपता काँपता एक सेठ साहब के पास आया और घबराते हुए बोला, “आपने मुझे पाँच रुपये दिए थे ताकि में जाकर गुप्ते को एक गाली दे आऊँ?”
“हाँ दिए थे।”
“तो मैं उसे गाली दे आया हूँ और उसने जवाब में मुझे दो गालियां दी हैं।”
“हाँ मैंने उसे दस रुपये दिए थे, तुम्हें गाली देने के लिए।”
उपदेश का असर
जलसे में एक बहुत बड़ा विद्वान ब्रहमन उपदेश दे रहा था, “वह आदमी बहुत बड़ा है जो सिदक़ दिल से अपने गुनाहों का एतराफ़ कर लेता है।”
छोटे आदमी ने यह उपदेश सुना और क़रीबी थाने में जाकर अपने तमाम साबिक़ा गुनाहों की रिपोर्ट दे दी और थानादार ने उसे पकड़ कर जेल में ठूंस दिया।
क्यों
छोटे आदमी को सरकार की तरफ़ से “अज़ीम फ़नकार” का ख़िताब दे दिया गया।
छोटे आदमी को अमीरों के क्लब का एज़ाज़ी मेंबर बना दिया गया।
छोटे आदमी की तारीफ़ में बड़े बड़े अख़बारों ने मज़ामीन शाये किए।
छोटे आदमी का शोहरा सारे मुल्क में हो गया।
क्यों...?
क्योंकि वो अब छोटे आदमियों से नफ़रत करने लगा था।
चोर
एक छोटे आदमी ने दूसरे छोटे आदमी की क़मीस चुरा ली। दूसरे ने पहले की पगड़ी चुरा ली। पहले ने दूसरे का जूता चुरा लिया। दूसरे ने पहले की धोती चुरा ली। पहले ने दूसरे का तहबंद चुरा लिया। दूसरे ने पहले की...
हफ़्ता भर बाद दोनों एक दूसरे का लिबास पहने फिर रहे थे।
दुआ क़बूल
मुल्क में ज़बरदस्त क़हत पड़ गया तो छोटे आदमी ने सिदक़-ए-दिल से दुआ मांगी, “भगवान बारिश भेज दे ताकि हम मौत से बच जाएं।”
भगवान ने दुआ क़बूल की और मुसलाधार बारिश भेज दी। और बारिश में छोटे आदमी का मकान गिर गया और छोटा आदमी उसके नीचे दब कर मर गया।
कुछ मिला
रात को छोटे आदमी के घर एक चोर घुस आया। छोटे आदमी की आँख खुल गई और उसने चोर से कहा, “क्यों भैया कुछ मिला?” चोर ने कहा, “कुछ भी नहीं मिला मगर हाँ, एक सबक़ ज़रूर मिला।”
“क्या?”
“यही कि तुम माल-ओ-दौलत से महरूम हो और मैं अक़्ल से।”
एक मातमी ख़त
एक तिजारती फ़र्म के मालिक को सुबह डाक से एक ख़त मिला।
मैसर्ज़ डिंगामल गूँगा मल जी, मैं निहायत अफ़सोस के साथ आपको ये इत्तिला देना चाहता हूँ कि आपके पुराने और गहरे दोस्त मिस्टर सुरजीत कल रात इंतक़ाल कर गए। उन पर अचानक निमोनिया का हमला हुआ और वो बावजूद फ़ौरी तिब्बी इमदाद के जांबर न हो सके।
आपका
शाम नाथ बरादर-ए-हक़ीक़ी सुरजीत
फ़र्म के मालिक ने ख़त पढ़ कर मेज़ के नीचे फेंक दिया और अपने ख़ज़ानची को आवाज़ देकर कहा, “मुनीम जी, ज़रा देखना मिस्टर सुरजीत के नाम हमारे कितने रुपये निकलते हैं।”
रिज़्क़ देने वाला
एक तवायफ़ ख़ुदा की बहुत ज़्यादा क़ाइल थी। बराबर उसकी इबादत किया करती थी। एक दिन मैंने पूछा, “अरी तू तवायफ़ हो कर ख़ुदा की इबादत करती है। तुझे क्या पड़ी है ख़ुदा की?”
वह बोली, “साईं बाबा, मैंने जिस वक़्त भी ख़ुदा से दुआ मांगी है, उसी वक़्त उसने कोई न कोई गाहक भेज दिया... इसलिए रिज़्क़ देने वाले की इबादत करनी ही चाहिए।”
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