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वो वक़्त का जहाज़ था करता लिहाज़ क्या
मैं दोस्तों से हाथ मिलाने में रह गया
शीशा टूटे ग़ुल मच जाए
दिल टूटे आवाज़ न आए
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इक अजनबी के हाथ में दे कर हमारा हाथ
लो साथ छोड़ने लगा आख़िर ये साल भी
ये भी तो सोचिए कभी तन्हाई में ज़रा
दुनिया से हम ने क्या लिया दुनिया को क्या दिया
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टैग : प्रेरणादायक
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सिर्फ़ ज़बाँ की नक़्क़ाली से बात न बन पाएगी 'हफ़ीज़'
दिल पर कारी चोट लगे तो 'मीर' का लहजा आए है
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हर सहारा बे-अमल के वास्ते बे-कार है
आँख ही खोले न जब कोई उजाला क्या करे
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अब खुल के कहो बात तो कुछ बात बनेगी
ये दौर-ए-इशारात-ओ-किनायात नहीं है
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क्या जाने क्या सबब है कि जी चाहता है आज
रोते ही जाएँ सामने तुम को बिठा के हम
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रसा हों या न हों नाले ये नालों का मुक़द्दर है
'हफ़ीज़' आँसू बहा कर जी तो हल्का कर लिया मैं ने
रंग आँखों के लिए बू है दिमाग़ों के लिए
फूल को हाथ लगाने की ज़रूरत क्या है
मोहब्बत चीख़ भी ख़ामोशी भी नग़्मा भी ना'रा भी
ये इक मज़मून है कितने ही उनवानों से वाबस्ता
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शैख़ क़ातिल को मसीहा कह गए
मोहतरम की बात को झुटलाएँ क्या
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अभी से होश उड़े मस्लहत-पसंदों के
अभी मैं बज़्म में आया अभी बोला कहाँ बोला
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हाए वो नग़्मा जिस का मुग़न्नी
गाता जाए रोता जाए
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