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हनीफ़ नज्मी

1959 | छत्तीसगढ़, भारत

हनीफ़ नज्मी आधुनिक उर्दू कविता की प्रमुख आवाज़ हैं।

हनीफ़ नज्मी आधुनिक उर्दू कविता की प्रमुख आवाज़ हैं।

हनीफ़ नज्मी

ग़ज़ल 24

अशआर 49

वो इक जगह कहीं रह सका और उस के साथ

किराया-दार थे हम भी मकाँ बदलते रहे

अगर जहाँ में कोई आइना नहीं तेरा

तो फिर तुझी को तिरे रू-ब-रू करूँगा मैं

वो ख़फ़ा हैं तो रहें हम को मनाना भी नहीं

उन को आना भी नहीं हम को बुलाना भी नहीं

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कमी कुछ अपने ही ज़ौक़-ए-तलब में है वर्ना

दु'आ का हर्फ़ कभी बे-असर नहीं जाता

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भला वो ख़ाक समझेंगे ख़ुदा क्या है ख़ुदी क्या है

जो अब तक ये नहीं समझे मक़ाम-ए-आदमी क्या है

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पुस्तकें 3

 

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