हक़ीर
ग़ज़ल 10
अशआर 22
जानता उस को हूँ दवा की तरह
चाहता उस को हूँ शिफ़ा की तरह
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क्या जानें उन की चाल में एजाज़ है कि सेहर
वो भी उन्हीं से मिल गए जो थे हमारे लोग
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ख़ूब मिल कर गले से रो लेना
इस से दिल की सफ़ाई होती है
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मुझे अब मौत बेहतर ज़िंदगी से
वो की तुम ने सितमगारी कि तौबा
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