इमरान राहिब के शेर
मैं ने पूछा है कि चाय के लिए वक़्त कोई
हँस के बोली है इशारे से घड़ी ठीक नहीं
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उस को ख़िज़ाँ के दौर में बाग़ी समझ के चूम
जो भी शजर पे आख़िरी पत्ता दिखाई दे
सस्ते में उन को भूलना अच्छा लगा है आज
चाय का एक घूँट भी काफ़ी रहा है आज
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