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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
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रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला इक़बाल साजिद
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सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा इक़बाल साजिद