जाफ़र ताहिर
ग़ज़ल 15
अशआर 10
ऐ वतन जब भी सर-ए-दश्त कोई फूल खिला
देख कर तेरे शहीदों की निशानी रोया
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आपस की गुफ़्तुगू में भी कटने लगी ज़बाँ
अब दोस्तों से तर्क-ए-मुलाक़ात चाहिए
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जब भी देखी है किसी चेहरे पे इक ताज़ा बहार
देख कर मैं तिरी तस्वीर पुरानी रोया
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