aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Javed Akhtar's Photo'

जावेद अख़्तर

1945 | मुंबई, भारत

बॉलीवुड स्क्रिप्ट-लेखक, गीतकार और शायर। 'शोले' व 'दीवार' जैसी फ़िल्मों के लिए प्रसिद्ध

बॉलीवुड स्क्रिप्ट-लेखक, गीतकार और शायर। 'शोले' व 'दीवार' जैसी फ़िल्मों के लिए प्रसिद्ध

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क़िस्सा गुल-बादशाह का

नाम मेरा है गुल-बादशाह जावेद अख़्तर

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

जावेद अख़्तर

जावेद अख़्तर

At a mushaira

जावेद अख़्तर

Fasaad ke baad - a nazm

जावेद अख़्तर

Hamare shauq ki ye inteha thi

जावेद अख़्तर

Javed Akhtar Explains the Ghazal

जावेद अख़्तर

Kabir ke dohon se, Mir ki shayari tak

जावेद अख़्तर

Kal Jahaan deewar thi hai aaj ek dar dekhiye

जावेद अख़्तर

Reciting own poetry

जावेद अख़्तर

ये खेल क्या है

मिरे मुख़ालिफ़ ने चाल चल दी है जावेद अख़्तर

kal jahaan diivaar thi hai aaj

जावेद अख़्तर

कल जहाँ दीवार थी है आज इक दर देखिए

जावेद अख़्तर

कल जहाँ दीवार थी है आज इक दर देखिए

जावेद अख़्तर

ज़रा मौसम तो बदला है मगर पेड़ों की शाख़ों पर नए पत्तों के आने में अभी कुछ दिन लगेंगे

जावेद अख़्तर

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता

जावेद अख़्तर

जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो

जावेद अख़्तर

निगल गए सब की सब समुंदर ज़मीं बची अब कहीं नहीं है

जावेद अख़्तर

भूक

आँख खुल गई मेरी जावेद अख़्तर

शबाना

ये आए दिन के हंगामे जावेद अख़्तर

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मनोज मुन्तशिर

A documentary

Face to Face Interview

Interview

Interview on Dil Se

Javed Akhtar - Biography

Javed Akhtar in conversation with Zamarrud Mughal for Rekhta org

Javed Akhtar is a poet, lyricist and scriptwriter. Javed Akhtar is a mainstream writer and some of his most successful work was carried out with Salim Khan as of half of the scripts writing duo credited as Salim-Javed between 1971 to 1982. He is recipient of the Sahitya Akademy Award and he won 15 Film Fare Award for his poetry collection "LAVA". Here are some excerpts of his interview with Zamarrud Mughal for Rekhta .org. जावेद अख़्तर

Javed Akhtar in conversation with Zamarrud Mughal for Rekhta.org

Javed Akhtar is a poet, lyricist and scriptwriter. Javed Akhtar is a mainstream writer and some of his most successful work was carried out with Salim Khan as of half of the scripts writing duo credited as Salim-Javed between 1971 to 1982. He is recipient of the Sahitya Akademy Award and he won 15 Film Fare Award for his poetry collection "LAVA". Javed Akhtar reciting his ghazal at Rekhta Studio. जावेद अख़्तर

One on One Interview - Al Jazeera

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मनोज मुन्तशिर

Main jahaan rahoon

Main jahaan rahoon अज्ञात

Neela Aasmaan

Neela Aasmaan लता मंगेशकर

Pyar mujhse jo kiya tumne

Pyar mujhse jo kiya tumne जगजीत सिंह

Tumko dekhta to ye khayal aaya

Tumko dekhta to ye khayal aaya जगजीत सिंह

Yun Zindagi Ki Raah Mein

Yun Zindagi Ki Raah Mein चित्रा सिंह

तुम को देखा तो ये ख़याल आया

तुम को देखा तो ये ख़याल आया अज्ञात

मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा

मैं पा सका न कभी इस ख़लिश से छुटकारा अमरीश मिश्रा

मुझ को यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं

मुझ को यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं

आज मैं ने अपना फिर सौदा किया

आज मैं ने अपना फिर सौदा किया जगजीत सिंह

किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी इतनी कसीली बात लिखूँ

किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी इतनी कसीली बात लिखूँ अज्ञात

जिस्म दमकता, ज़ुल्फ़ घनेरी, रंगीं लब, आँखें जादू

जिस्म दमकता, ज़ुल्फ़ घनेरी, रंगीं लब, आँखें जादू नुसरत फ़तह अली ख़ान

जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो

जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो शहरयार

दर्द अपनाता है पराए कौन

दर्द अपनाता है पराए कौन जगजीत सिंह

दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं

दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं जगजीत सिंह

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दुश्वारी जगजीत सिंह

प्यास की कैसे लाए ताब कोई

प्यास की कैसे लाए ताब कोई जगजीत सिंह

फिरते हैं कब से दर-ब-दर अब इस नगर अब उस नगर इक दूसरे के हम-सफ़र मैं और मिरी आवारगी

फिरते हैं कब से दर-ब-दर अब इस नगर अब उस नगर इक दूसरे के हम-सफ़र मैं और मिरी आवारगी किशोर कुमार

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ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब अमरीश मिश्रा

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यक़ीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा अज्ञात

शहर के दुकाँ-दारो कारोबार-ए-उल्फ़त में सूद क्या ज़ियाँ क्या है तुम न जान पाओगे

शहर के दुकाँ-दारो कारोबार-ए-उल्फ़त में सूद क्या ज़ियाँ क्या है तुम न जान पाओगे नुसरत फ़तह अली ख़ान

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सच ये है बे-कार हमें ग़म होता है जगजीत सिंह

हमारे शौक़ की ये इंतिहा थी

हमारे शौक़ की ये इंतिहा थी नाज़िश

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