Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
KHalid Malik Sahil's Photo'

ख़ालिद मलिक साहिल

1961 | जर्मनी

ख़ालिद मलिक साहिल के शेर

737
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

ख़्वाब देखा था मोहब्बत का मोहब्बत की क़सम

फिर इसी ख़्वाब की ताबीर में मसरूफ़ था मैं

बस एक ख़ौफ़ था ज़िंदा तिरी जुदाई का

मिरा वो आख़िरी दुश्मन भी आज मारा गया

जुनूँ का कोई फ़साना तो हाथ आने दो

मैं रो पड़ूँगा बहाना तो हाथ आने दो

चमक रहे थे अंधेरे में सोच के जुगनू

मैं अपनी याद के ख़ेमे में सो नहीं पाया

तुम मस्लहत कहो या मुनाफ़िक़ कहो मुझे

दिल में मगर ग़ुबार बहुत देर तक रहा

हम लोग तो अख़्लाक़ भी रख आए हैं 'साहिल'

रद्दी के इसी ढेर में आदाब पड़े थे

किसी ख़याल का कोई वजूद हो शायद

बदल रहा हूँ मैं ख़्वाबों को तजरबा कर के

लफ़्ज़ रंगों में नहाए हुए घर में आए

तेरी आवाज़ की तस्वीर में मसरूफ़ था मैं

बाज़ औक़ात तिरा नाम बदल जाता है

बाज़ औक़ात तिरे नक़्श भी खो जाते हैं

जवाब जिस का नहीं कोई वो सवाल बना

मैं ख़्वाब में उसे देखूँ कोई ख़याल बना

रौशनी की अगर अलामत है

राख उड़ती है क्यूँ शरारे पर

मैं तमाशा हूँ तमाशाई हैं चारों जानिब

शर्म है शर्म के मारे नहीं रो सकता मैं

मैं किस यक़ीन से लिक्खा गया हूँ मिट्टी पर

वो कौन है जो मिरे सिलसिले की ढाल बना

ज़र्रे ज़र्रे में क़यामत का समाँ है 'साहिल'

एक ही दिल के सहारे नहीं रो सकता मैं

गुज़र रही है जो दिल पर वही हक़ीक़त है

ग़म-ए-जहाँ का फ़साना ग़म-ए-हयात से पूछ

इस शहर के लोगों पे भरोसा नहीं करना

ज़ंजीर कोई दर पे लगाओ कि चला मैं

मैं अपनी आँख भी ख़्वाबों से धो नहीं पाया

मैं कैसे दूँगा ज़माने को जो नहीं पाया

दुनिया से दूर अपने बराबर खड़े रहे

ख़्वाबों में जागते थे मगर रात हो गई

इस तिश्ना-लबी पर मुझे एज़ाज़ तो बख़्शो

बादा-कशो जाम उठाओ कि चला मैं

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

GET YOUR PASS
बोलिए