ख़ालिदा हुसैन की कहानियाँ
परिंदा
हाँ! में उन्हें ख़ूब पहचानता हूँ। ये उसी के क़दमों की चाप है। ज़ीने पर पूरी ग्यारह सीढ़ियाँ। फिर दरवाज़े की हल्की सी आहट और वो क़दम, नर्म रवां बादलों के से तैरते क़दम। उधर उस दहलीज़ से अंदर होंगे और उस कमरे का वजूद बदल जाएगा। मैं बदल जाऊँगा। एक अनदेखा मफ़हूम
हज़ार पाया
मैंने दरवाज़ा खोला। अंदर के ठंडे अँधेरे के बा’द, बाहर की चकाचौंद और तपिश पर मैं हैरान रह गया। दरवाज़ा जिसका रंग सलेटी और जाली मटियाली थी, स्प्रिंगों की हल्की सी आवाज़ से बंद हो गया। उस बंद दरवाज़े के अंदर टिंक्चर आयोडीन और स्पिरिट की बू थी और चमड़े मंढे