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किस से उम्मीद करें कोई इलाज-ए-दिल की
चारागर भी तो बहुत दर्द का मारा निकला
मैं ख़ुद ही अपने तआक़ुब में फिर रहा हूँ अभी
उठा के तू मेरी राहों से रास्ता ले जा
मैं दर-ब-दर हूँ अभी अपनी जुस्तुजू में बहुत
मैं अपने लहजे को अंदाज़ दे रहा हूँ अभी
मैं कि अपना ही पता पूछ रहा हूँ सब से
खो गई जाने कहाँ उम्र-ए-गुज़िश्ता मेरी
तिरा तो क्या कि ख़ुद अपना भी मैं कभी न रहा
मिरे ख़याल से ख़्वाबों का सिलसिला ले जा