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महताब आलम

1972 | भोपाल, भारत

महताब आलम

ग़ज़ल 8

अशआर 14

दिल भी तोड़ा तो सलीक़े से तोड़ा तुम ने

बेवफ़ाई के भी आदाब हुआ करते हैं

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वतन को फूँक रहे हैं बहुत से अहल-ए-वतन

चराग़ घर के हैं सरगर्म घर जलाने में

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उस को आवाज़ दो मोहब्बत से

उस के सब नाम प्यारे प्यारे हैं

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तुम ज़माने के हो हमारे सिवा

हम किसी के नहीं तुम्हारे हैं

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ये सन कर मेरी नींदें उड़ गई हैं

कोई मेरा भी सपना देखता है

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पुस्तकें 5

 

चित्र शायरी 1

 

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