मख़्फ़ी लखनवी, अमतुल-फ़ातिमा (1902-1953) लखनऊ के एक प्रतिष्ठित घराने में पैदा हुईं। उर्दू के साथ साथ अरबी, फ़ारसी, संस्कृत और हिंदी पढ़ी। बचपन से ही शेर कहने लगीं। तर्ही निशिस्तों और मुशाइरों में बुलाया जाता था, मगर बाहर जाना मुम्किन नहीं था, इसलिए अपना कलाम भेज देती थीं। आज़ादी के बाद कराची चली गईं।