मेराज फ़ैज़ाबादी के शेर
हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताब
पढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियाँ हम ने
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मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते
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जो कह रहे थे कि जीना मुहाल है तुम बिन
बिछड़ के मुझ से वो दो दिन उदास भी न रहे
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आज भी गाँव में कुछ कच्चे मकानों वाले
घर में हम-साए के फ़ाक़ा नहीं होने देते
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यूँ हुआ फिर बंद कर लीं उस ने आँखें एक दिन
वो समझ लेता था दिल का हाल चेहरा देख कर
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