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Mohammad Mazhar Niyazi's Photo'

मोहम्मद मज़हर नियाज़ी

1966 | मियाँवाली, पाकिस्तान

मोहम्मद मज़हर नियाज़ी के शेर

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ये कमरा बंद है चारों तरफ़ से

उदासी किस तरफ़ से रही है

हज़ारों आँखें मुझे बे-ज़बाँ समझती हैं

जो देखता है मैं उस को सुनाई देता हूँ

तू बहुत ख़ुश नज़र आता है मुझे इतना बता

मुझ से पहले भी कोई शख़्स यहाँ आया था

रास्ते की नमी बताती है

आबला-पा यहाँ से गुज़रे हैं

शहर छोटा है मगर दिल है कुशादा इतना

हम बड़े शहर में होते तो समुंदर होते

मैं मिलता अगर मसाफ़त को

रास्ते की थकन कहाँ जाती

घर से निकलूँ तो खिलौने भी उठा लेता हूँ

मुझ से रोते हुए बच्चे नहीं देखे जाते

बक़ाया ज़ख़्म इज़ाफ़ी दिए गए मुझ को

मिरे लिए तो तिरा इंतिज़ार काफ़ी था

नज़र के पार भी सब्ज़ा बिछा है

मोहब्बत दूर तक फैली हुई है

उसे कहो कि यहाँ इतनी देर तक तो रुके

कि सारे शहर की आब-ओ-हवा बदल जाए

नूर से दूर सियह-रात में ज़िंदा रहना

कितना मुश्किल है मज़ाफ़ात में ज़िंदा रहना

वो जब चेहरा दूसरी जानिब कर लेता है

मैं अपनी तस्वीर में आधा रह जाता हूँ

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