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आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते
दो कश्तियाँ मिली हैं डुबोने के वास्ते
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टैग : गिर्या-ओ-ज़ारी
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सुर्ख़ी शफ़क़ की ज़र्द हो गालों के सामने
पानी भरे घटा तिरे बालों के सामने
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बोसा होंटों का मिल गया किस को
दिल में कुछ आज दर्द मीठा है
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टैग : किस
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- ग़ज़ल देखिए
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देखा है आशिक़ों ने बरहमन की आँख से
हर बुत ख़ुदा है चाहने वालों के सामने
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कभी पयाम न भेजा बुतों ने मेरे पास
ख़ुदा हैं कैसे कि पैग़ाम्बर नहीं रखते
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ज़ाहिदो पूजा तुम्हारी ख़ूब होगी हश्र में
बुत बना देगी तुम्हें ये हक़-परस्ती एक दिन
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उस बुत के नहाने से हुआ साफ़ ये पानी
मोती भी सदफ़ में तह-ए-दरिया नज़र आया
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शैख़ ले है राह का'बे की बरहमन दैर की
इश्क़ का रस्ता जुदा है कुफ़्र और इस्लाम से
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गर्मी-ए-हुस्न की मिदहत का सिला लेते हैं
मिशअलें आप के साए से जला लेते हैं
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ऐ बुत ये है नमाज़ कि है घात क़त्ल की
निय्यत अदा की है कि इशारे क़ज़ा के हैं
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आँखों में नहीं सिलसिला-ए-अश्क शब-ओ-रोज़
तस्बीह पढ़ा करते हैं दिन रात तुम्हारी
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जान कर उस बुत का घर काबा को सज्दा कर लिया
ऐ बरहमन मुझ को बैतुल्लाह ने धोका दिया
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चेहरा तमाम सुर्ख़ है महरम के रंग से
अंगिया का पान देख के मुँह लाल हो गया
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मैं जुस्तुजू से कुफ़्र में पहुँचा ख़ुदा के पास
का'बे तक इन बुतों का मुझे नाम ले गया
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शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना
क्या लुत्फ़ है शबनम तह-ए-शबनम नज़र आई
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शुक्र है जामा से बाहर वो हुआ ग़ुस्से में
जो कि पर्दे में भी उर्यां न हुआ था सो हुआ
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भटके फिरे दो अमला-ए-दैर-ओ-हरम में हम
इस सम्त कुफ़्र उस तरफ़ इस्लाम ले गया
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