नासिर शहज़ाद
ग़ज़ल 44
अशआर 34
फिर यूँ हुआ कि मुझ से वो यूँही बिछड़ गया
फिर यूँ हुआ कि ज़ीस्त के दिन यूँही कट गए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
अख़रोट खाएँ तापें अँगेठी पे आग आ
रस्ते तमाम गाँव के कोहरे से अट गए
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
नय्या बाँधो नदी किनारे सखी
चाँद बैराग रात त्याग लगे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
एक काटा राम ने सीता के साथ
दूसरा बन बॉस मेरे नाम पर
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए