मक़सूद अहमद नुत्क़ काकोरवी
ग़ज़ल 2
अशआर 1
दहन का लब का ज़क़न का जबीं का बोसा दो
जहाँ जहाँ का मैं माँगूँ वहीं का बोसा दो
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere