Prem Bhandari's Photo'

प्रेम भण्डारी

1949

प्रेम भण्डारी के शेर

2.7K
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

जाने क्यूँ लोग मिरा नाम पढ़ा करते हैं

मैं ने चेहरे पे तिरे यूँ तो लिखा कुछ भी नहीं

छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में

ज़रा पढ़ना ग़ज़ल की ये किताब आहिस्ता आहिस्ता

शाम हुई तो सूरज सोचे

सारा दिन बेकार जले थे

तेरी चाहत की है इतनी शिद्दत

पा लिया तुझ को तो मर जाऊँगा

मेरी शोहरत के पीछे है

हाथ बहुत रुस्वाई का

तेरे मेरे बीच नहीं है ख़ून का रिश्ता फिर भी क्यूँ

तेरी आँख के सारे आँसू मेरी आँख से बहते हैं

पहली साँस पे मैं रोया था आख़िरी साँस पे दुनिया

इन साँसों के बीच में हम ने क्या खोया क्या पाया

कैसे तन्हा रात कटेगी

यादों की गठरी ही खोलें

जिस पर तमाम उम्र बहुत नाज़ था मुझे

मेरा वो इल्म मेरी सिफ़ारिश बन सका

मैं तो सब कुछ भूल चुका हूँ

तू भूले तो बात बराबर

कुछ रिश्ते हैं जिन की ख़ातिर

जीते जी मरना होता है

सारी बे-रंग सोच के चेहरे

लफ़्ज़ पहनें तो फिर निखरते हैं

रंग तेरा उड़ा उड़ा सा है

लग गई है तुझे नज़र शायद

शंकर बना के लोग मुझे पूजते रहे

मजबूरियों में ज़हर निगलना पड़ा मुझे

आग लगाई तुम ने ही तो

लोगों ने तो सिर्फ़ हवा दी

सारी सारी रात मैं जागा

वो मेरी आँखों में सोया

मुझ को याद रहा तू भूला

बात है ये तो आदत की

भीक दे कर जाने क्या लेंगे

इक भिकारन डरी डरी सोचे

खेल-कूद कर शाम ढले क्यूँ

अपने घर को जाती धूप

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

GET YOUR FREE PASS
बोलिए