aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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एस ए मेहदी

ग़ज़ल 4

 

अशआर 4

इन में क्या फ़र्क़ है अब इस का भी एहसास नहीं

दर्द और दिल का ज़रा देखिए यकसाँ होना

जिंस-ए-वफ़ा का दहर में बाज़ार गिर गया

जब इश्क़ फ़ैज़-ए-हुस्न का हामिल नहीं रहा

मुस्तक़िल अब बुझा बुझा सा है

आख़िर इस दिल को ये हुआ क्या है

दोनों हों कैसे एक जा 'मेहदी' सुरूर-ओ-सोज़-ए-दिल

बर्क़-ए-निगाह-ए-नाज़ ने गिर के बता दिया कि यूँ

पुस्तकें 3

 

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