सलीम शहज़ाद
अशआर 8
हवा की ज़द में पत्ते की तरह था
वो इक ज़ख़्मी परिंदे की तरह था
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ज़र्द पत्ते में कोई नुक़्ता-ए-सब्ज़
अपने होने का पता काफ़ी है
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बातों में है उस की ज़हर थोड़ा
थोड़ा सा मज़ा शराब जैसा
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अन-कही कह अन-सुनी बातें सुना
रह गया जो कुछ भी सोचा सोच ले
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उसे पता है कि रुकती नहीं है छाँव कभी
तो फिर वो अब्र को क्यूँ साएबाँ समझता है
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