शकीलुर्रहमान की बच्चों की कहानियाँ
कछवा और मेंढक
एक था कछुआ। अक्सर समुंदर से निकल कर रेत पर बैठ जाता और सोचने लगता दुनिया भर की बातें, समुंदर के तमाम कछुए उसे अपना गुरु मानते थे इसलिए कि वो हमेशा अच्छे और मुनासिब मश्वरे दिया करता था। मसलन रेत पर अंडे देने के लिए कौन सी जगह मुनासिब होगी, उमूमन दुश्मन
क़िस्सा लखन लाल जी का
मुझे याद है मैं बहुत छोटा था। वो अचानक हमारी हवेली में दनदनाते हुए दाख़िल हुए थे, इंतिहाई भयानक चेहरा, कहीं से भालू, कहीं से हनुमान और कहीं से लंगूर, बड़े-बड़े बाल, एक उछलती-लचकती बड़ी सी दुम, उछलते हुए मेरे सामने आन खड़े हुए और उछल-उछल कर कहने लगे, “नाक
मुल्ला नसरूद्दीन हिन्दुस्तान आए
प्यारे बच्चो, अगर आपको कहीं तेज़, चालाक आँखें और साँवले चेहरे पर स्याह दाढ़ी लिए कोई शख़्स नज़र आ जाए तो रुक जाईए और ग़ौर से देखिए, अगर उसकी क़बा पुरानी और फटी हुई हो, सर पर टोपी मैली और धब्बों से भरी हुई हो और उसके जूते टूटे हुए और ख़स्ता-हाल हों तो यक़ीन