जिसको इज़्ज़त है उसको ग़ैरत है, जिसको ग़ैरत है उसको इज़्ज़त है।
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बे-इल्मी मुफ़्लिसी की माँ है। जिस क़ौम में इल्म-ओ-हुनर नहीं रहता वहाँ मुफ़्लिसी आती है और जब मुफ़्लिसी आती है तो हज़ारों जुर्मों के सरज़द होने का बाइस होती है।
(तक़रीर-ए- जलसा-ए-अज़ीमाबाद पटना, 26 मई)
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हम लोग आपस में किसी को हिंदू, किसी को मुसलमान कहें मगर ग़ैर-मुल्क में हम सब नेटिव (Native) यानी हिन्दुस्तानी कहलाए जाते हैं। ग़ैर-मुल्क़ वाले ख़ुदा-बख़्श और गंगा राम दोनों को हिन्दुस्तानी कहते हैं।
(तक़रीर-ए-सर सय्यद जो अंजुमन इस्लामिया, अमृतसर के ऐडरेस के जवाब में 26 जनवरी 1884 ई. को की गई)
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लहजा: इसको भी तहज़ीब में बड़ा दख़ल है। अक्खड़ लहजा इस क़िस्म की आवाज़ जिससे शुब्हा हो कि आदमी बोलते हैं या जानवर लड़ते हैं, ना-शाइस्ता होने की निशानी है।
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मैं अपनी ज़बान से वो मुराद लेता हूँ जो किसी मुल्क में इस तरह पर मुस्तामल हो कि हर शख़्स उस को समझता हो और वो उस में बातचीत करता हो। ख़्वाह वो उस मुल्क की असली ज़बान हो या न हो और उसी ज़बान पर मैं वरनेकुलर के लफ़्ज़ का इस्तिमाल करता हूँ।