वलीद अनवर वलीद के शेर
अभी तूफ़ाँ का रुख़ गरचे मिरे पहलू की जानिब है
तिरी आग़ोश में बरपा कोई महशर भी देखूँगा
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टैग : महशर
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सफ़र आवारगी का है 'वलीद' अब सोचना कैसा
अँधेरी रात ढलने पर कभी मैं घर भी देखूँगा