यज़दानी जालंधरी के शेर
इज्ज़ के साथ चले आए हैं हम 'यज़्दानी'
कोई और उन को मना लेने का ढब याद नहीं
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टैग : आजिज़ी
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शम्अ होगी सुब्ह तक बाक़ी न परवाने की ख़ाक
अहल-ए-महफ़िल की ज़बाँ पर दास्ताँ रह जाएगी
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