aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
Author: | Raiyan Abulolai |
Language: | Hindi |
Publisher: | Rekhta Publications |
Year: | 2023 (1st Edition) |
Also available on
About the Book: बिहार में क़व्वाली की बड़ी समृद्ध परंपरा रही है। यहाँ की ख़ानक़ाहों ने जहाँ विश्व को शान्ति और सद्भावना का सन्देश दिया है, वहीं यहाँ के क़व्वालों ने इन सूफ़ी संदेशों को अपना स्वर दिया है। बिहार के सूफ़ी-संतों पर बहुत कुछ लिखा गया है, परन्तु यहाँ की समृद्ध क़व्वाली परम्परा को सहेजने का ये पहला प्रयास है। "बिहार की क़व्वालियाँ" नामी इस किताब में बिहार की ख़ानक़ाहों में पढ़ने वाले क़व्वालों के रोचक किस्सों के साथ-साथ, उनके द्वारा पढ़े जाने वाले कलाम को भी शामिल किया गया है।
About the Author: 18 जून 1997 में ख़ानक़ाह सज्जादीया अबुलउलाईया, दानापुर (पटना) में जन्मे रय्यान अबुलउलाई, प्रसिद्ध सूफ़ी शाइर हज़रत शाह अकबर दानापूरी की वंश परंपरा से आते हैं। रय्यान अबुलउलाई एक गंभीर अध्येता है और उनके सैकड़ों आलेख सूफ़ीवाद, सूफ़ी परंपरा के विषय पर छप चुके हैं। वर्तमान में वे रेख़्ता फ़ाउंडेशन के उपक्रम सूफ़ीनामा से संबद्ध हैं।
Read Sample Data
क्रम सूची
1. ऐ बे-नियाज मालिक मालिक है नाम तेरा - 46
2. बहारें तेरी मुर्गान-ए-चमन तेरे चमन तेरा - 47
3. कहें किस को अब कि है तू ही तू तिरी शान जल्ला-जलालुहु - 48
4. कौन है जल्वा-नुमा शाहिद-ए-वहदत के सिवा - 49
5. इश्क़ दफ्तर में पहले हम्द हो अल्लाह का - 50
6. मिरे हाजत रवा हो-या मोहम्मद - 52
7. रहा दिल में मेरे ख़याल-ए-मोहम्मद - 53
8. दो आलम जिस का परतव है मुहिब्बो वो जमीं ये है - 54
9. मुक़द्दस हो गई दुनिया हुआ गुल शह की आमद का - 55
10. रसूलुल्लाह के रुख के बराबर हो नहीं सकता - 56
11. हरम से सफ़र आप का हो रहा है - 57
12. तू ही ख़ातिम नुबुव्वत है तू ही ख़ातिम रिसालत का - 58
13. आज फ्रश्ख़-ए-रहमत-उल-लिल-आलमी पैदा हुए - 59
14. देख कर सल्ले-अला चाँद सा मुखड़ा तेरा - 60
15. वुफूर-ए-शौक़-ए-मुज्तर है कि उन को हाय क्या कहिए - 61
16. अल्लाह रे रू-ए-मेहर-ए-अरब है माह से बढ़ कर जिस में दमक - 62
17. जब कूचा-ए-अहमद से बाद-ए-सहरी निकली - 63
18. नाजाँ है उस गली से आकर नसीम कैसी - 64
19. या खुदा! दिल में रहे शौक़-ए-लिका-ए-महबूब - 65
20. औरों से जुदा बीमार-ए-शह-ए-अबरार की हालत होती है - 66
1. ले चलीं आज सखी ख़्वाजा के दर पर गागर - 192
2. चल सखी चिश्ती नगर सर पे उठा कर गागर - 193
3. आरिफ्र-ए-रहनुमा का संदल है - 195
4. चल सखी सर पे लिए ख्वाजा का प्यारा संदल - 196
5. इस्तादा है अजल से क़ादिर निशान तेरा - 198
6. बंदे को निगाह-ए-लुत्फ़-ए-मौला बस है - 200
7. क्रिस्मत ने रसा हो के रसाई बख़्शी - 201
8. अमानत नाज करती है सदाक़त नाज करती है - 201
9. गिर्दाब नहीं उम्र का सफीना होगा - 201
10. बसंत आई चमन सब्ज हैं जमीन हरी - 203
11. बसंत आई हुए मुर्ग-ए-नरमा-जा पैदा - 203
12. बहार होली की पर्दे में रंग लाई है - 205
13. बाट भली पर सॉकरी, नगर भला पर दूर - 207
14. सॉकर कुएँ पताल पानी, लाखन बूंद बिकाय - 207
15. शर्फ सिर्फ मायल करे, दर्द कछू न बसाय - 207
16. काला हंसा निरमला, बसे समंदर तीर - 207
तसद्दुक अली 'असद'
(1855-1929)
कहें किस को अब कि है तू ही तू तिरी शान जल्ला-जलालुहु1
हुए हम तो हम से ही दू-ब-दू-तिरी शान जल्ला-जलालुहु
(1 उस की महिमा महान है यानी ईश्वर 2 आमने-सामने)
तिरा हुक्म जारी है कू-ब- कू1 तूही ख़ुद-नुमा2 भी है सू-ब-सू3
सिवा तेरे कौन है रू-ब-रू तिरी शान जल्ला जलालुहु
(1 गली गली 2 स्वयं प्रकट होने वाला 3 हर तरफ)
कभी दुश्मनों पे करम किया कभी दोस्तों पे सितम1 किया
ये अजब तरह की है तेरी ख़ू2-तिरी शान जल्ला - जलालुहु
(1अत्याचार 2आदत)
न दिलों में तेरा पता लगा न बुतों में तेरा निशाँ मिला
कहाँ अब करूँ तिरी जुस्तुजू-तिरी शान जल्ला-जलालुहु
यहाँ कुर्ब1 है न तो बोद2 है यहाँ दीद3 है न शनीद4 है
मिरी बे-निशानी है चार सू' तिरी शान जल्ला - जलालुहु
(1 निकटता 2 दूरी 3 मुलाकात 4 बातचीत चारों तरफ)
ये नफख्तु फ्रीहिं1 का बहाना है वहूवा मअकुम2 का फसाना है
गुल-ए-असद3 की कुछ और ही बू-तिरी शान जल्ला-जलालुहु
(1 कुरआन की एक आयत जिसका अर्थ है मैंने यह फूंका 2 कुरआन की एक आयत
जिसका अर्थ है वो तुम्हारे साथ है 3 असद का फूल)
अफ़ज़ल हुसैन अस्दकी
(1864-1943)
इश्क़ के दफ्तर में पहले हम्द1 हो अल्लाह का
हर सतर में तब खुलेगा मा'नी2 वजहुल्लाह3 का
(1 स्तुति 2 अर्थ 3 अल्लाह का चेहरा)
दिल को मेरे देख ले नासेह1 तो फिर कुछ बोलना
तब तुझे मालूम होगा हाल बैतुल्लाह2 का
(1 उपदेशक 2 अल्लाह का घर, काना)
हम तो आशिक़ हैं नबी के ख़ास अज-रोज-ए-अजल1
जिस का आशिक़ है ख़ुदा और नूर है अल्लाह का
(1 अनादि काल से)
मौत हो हुब्ब-ए-नबी1 में जिंदगी इश्क-ए-नबी2
बार-ए-एहसों3 फातिहा4 का हो न खल्कुल्लाह5 का
(1 पैसम्बर की मोहब्बत 2 पैराम्बर का इश्क 3 एहसान का बोझ
4 बपर की जाने वाली प्रार्थना 5 ईश्वर की सृष्टि)
ऐ 'फ्रक्रीर' अपनी तमन्ना देखिए पूरी हो कब
रौजा-ए-जन्नत1 में पहुँचें हुक्म हो अल्लाह का
(1 जन्नत का बाग़)