aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
Author: | Suhail Azad |
Language: | Hindi |
Publisher: | Rekhta Publication |
Year: | 2023 (1st Edition) |
Also available on
Abount the Book: शेर-ओ-शायरी के नए आशिक़ों के लिए ये एक बहुत ही अहम किताब है। इस किताब में शायरी की तमाम विधाओं को बहुत नज़दीक से बताया और समझाया गया है। इसमें शायरी में उच्चारण(तलफ़्फ़ुज़) पर विस्तार से बात की गई है। साथ ही, मशहूर शायरों के कलाम पर बात और उनकी सरल भाषा में व्याख्या की गई है।
Abount the Author: "सुहैल आज़ाद 1966 में पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) में पैदा हुए। उन्होंने बरेली कॉलेज, बरेली और कुमाऊँ विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और लगभग 30 साल तक उत्तराखण्ड पुलिस विभाग में सेवा देने के बाद 2021 में स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हुए। सुहैल आज़ाद नयी उर्दू शायरी का एक रौशन और मशहूर नाम हैं जो अपने अलग उस्लूब और अन्दाज़-ए-बयान से पहचाने जाते हैं। शायरी करने के साथ-साथ नए कहने वालों की इस्लाह और उनको फ़न की बारीकियाँ समझाने में अहम भूमिका निभाते हैं। अब तक उनकी शायरी के चार संग्रह (उर्दू और देवनागरी में) प्रकाशित हो चुके हैं। इन दिनों में हल्द्वानी (नैनीताल) में रहते हैं।"
Read Sample Data
फ़ेहरिस्त
1. शायरी क्या है................................................13
2. शायरी को सीखना और समझना......................20
3. प्रचलित विधाएँ.............................................53
4. शायरी में तलफ्फुज (Pronunciation) की अहमियत......85
5. कुछ मशहूर शायरों के कलाम पर चन्द बातें और शेरों की व्याख्या..........................................87
6. आख़िरी बात................................................109
शायरी क्या है
शायरी इंसानी जज्बात और ख़यालात को एक ख़ास पैमाने (लय या छंद) के साथ
बयान करने का फन है। वैसे तो शेर किसी चीज के जानने और पहचानने या उससे वाक्रफ्रियत
को कहते हैं मगर इसतलाहन (Terminologically) ये वो कलाम-ए-मौजूं यानी वज्न और मीटर
की पाबन्दियों में कहा गया कलाम है जिसमें कि शायर आपने जज्बात, ख़यालात, एहसासात
या किसी वाक्रिए को बयान करता है। शेर को सुन कर या पढ़ कर अन्दाजा लगाया जा सकता है
कि शायर ने क्या बात नज्म की है, वो क्या कहना चाहता है और समझने वाले और पढ़ने वालों
पर इस कलाम का क्या प्रभाव होता है। शायर और पढ़ने वाले के दिल-ओ-दिमाग़ के बीच एक
रिश्ता बन जाता है जिसका नाम शुऊर (sense) है। ये शुऊर ही पढ़ने वाले को शेर की अस्ल से
शेर की कैफियत से, शेर के मतलब और मफतूम से आगाह कराती है। उधर ये सच्चाई कि
शायर के शुऊर पर उसकी जिन्दगी के साथ गुजरते वक्त के निशान बनते चले जाते हैं और वो
निशान इतने गहरे होते हैं कि एक शायर का एहसास बन जाते हैं। बस यही एहसास वक़्त के साथ
इस तरह पिघलता रहता है जैसे ग्लेशियर पिघलते हैं और रफ्ता रफ्ता अपना पानी पहाड़ी
दरियाओं और नदियों में छोड़ते रहते हैं। ये तख़य्युल की दुनिया बड़ी अनोखी और हसीन होती है।
इसमें शायर अपने वर्तमान और भूतकाल के सारे ताने-बाने बुनकर हिफाजत के साथ रखता रहता है।
दूसरे लफजों में ये इंसान पर बीते हुए हर लम्हे का रिकॉर्ड रूम है जहाँ से हालात के
मुताबिक याददाश्त की फ्राईलें निकलती रहती हैं और शायरी का रूप लेती रहती हैं।
दूसरे लफ्जों में खयालात, जज्बात, हालात, वाक्रयात वग़ैरा को वज्न की रिआयत के साथ
एक ख़ास अन्दाज में बयान करना ही ( या दूसरे लफ्जों में नज्म करना) शायरी है।
शेर क्या है! ये सवाल अभी भी ना मुकम्मल रह गया। शेर दो मौजू मिसरों में शायर के
तख़य्युल यानी उसकी कल्पनाओं को अल्फाज के रूप में पेश करने का नाम है यानी ये
कि एक शेर दो-दो पंक्तियों की ऐसी शाब्दिक संरचना है जो किसी ख़ास छंद की पाबन्दी
के साथ कहे गए हों। ये शेर की एक सादा और आसान परिभाषा है।
आप ये भी समझ सकते हैं कि कुछ सार्थक लफजों के साथ किसी ख़ास वज्न (बहर) में किसी
ख़याल को बुनना शेर कहलाता है। ये भी कहा जा सकता है कि किसी ख़याल या वाक्रये को बुनन
के लिए जिन अल्फाज को चुना जाता है, शेर की खूबसूरती का दार-ओ-मदार इसी चुनाव पर होता है।
शेरों की बहुत सी आसान मिसालें आप देख सकते हैं-
सारे आलम पर हूँ मैं छाया हुआ
मुसतनद है मेरा फरमाया हुआ
(मीर)
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को गालिब ये ख़याल अच्छा है
(गालिब)
ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे बता तेरी रजा क्या है
(अल्लमा इक़बाल)
एक मुददत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
(फ़िराक़ गोरखपूरी)