aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1928 - 2012 | दिल्ली, भारत
प्रसिद्ध कहानीकार,आलोचक और बुद्धिजीवी. आधुनिक युग में साहित्य की समस्या, सम्भावनाएँ और उनके प्रभाव पर विचारोत्तेजक लेखन के लिए जाने जाते हैं.
धर्म के नाम पर होने वाले क़त्ल-ओ-ग़ारत को आधार बनाकर लिखी गई यह कहानी एक लाश के माध्यम से मानव स्वभाव को बयान करती है। मुर्दा-घर में अभी-अभी कुछ लाशें आई हैं। उन्हीं लाशों में वह लाश भी है। वह लाश मुर्दा-घर के परिदृश्य को देखती है और आपबीती सुनाने लगती है। इस आपबीती में वह उन घटनाओं का ज़िक्र भी करती है, जिनमें दुनिया के हज़ारों-लाखों लोग क़त्ल हुए और उनकी लाशों को सड़ने के लिए लावारिस छोड़ दिया गया।
यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसे नैनीताल टूर के दौरान एक साथी परेश मिल जाता है। वह उसका रूम-मेट है। परेश को दुनिया की ख़ूबसूरती में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं है। वह कमरे में पड़ा हर वक़्त किताबों में डूबा रहता है। एक शाम जब उसका साथी क्लब से लौटा तो नंदिनी भी उसके साथ थी। नंदिनी एक चुलबुली और ज़िंदगी की रंगीनियों से भरपूर लड़की थी। जब वह परेश से मिली तो उसके विचार सहसा बदल गए और वह ज़िंदगी की रंगीनियों को छोड़कर उसकी खोज में निकल पड़ी।
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