शाहिद मीर
ग़ज़ल 16
अशआर 9
पहले तो छीन ली मिरी आँखों की रौशनी
फिर आईने के सामने लाया गया मुझे
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और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मिरे पैरों के बराबर कर दे
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गँवाए बैठे हैं आँखों की रौशनी 'शाहिद'
जहाँ-पनाह का इंसाफ़ देखने वाले
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तुझ को देखा नहीं महसूस किया है मैं ने
आ किसी दिन मिरे एहसास को पैकर कर दे
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