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आसमाँ आसमाँ पाँव धरते गए दिन गुज़रते गए

मुमताज़ अतहर

आसमाँ आसमाँ पाँव धरते गए दिन गुज़रते गए

मुमताज़ अतहर

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    आसमाँ आसमाँ पाँव धरते गए दिन गुज़रते गए

    हम सितारों को बजरे में भरते गए दिन गुज़रते गए

    राह-ए-पुर-ख़ार के आबला-पा मुसाफ़िर थे इक ध्यान में

    रेग-ए-इमरोज़ पर फूल धरते गए दिन गुज़रते गए

    वक़्त की शाख़ पर ज़र्द मौसम खिला और हवा चल पड़ी

    दूर तक ख़ुश्क पत्ते बिखरते गए दिन गुज़रते गए

    एक चिड़िया कथा कोई कहती रही नाव बहती रही

    और माँझी से हम बात करते गए दिन गुज़रते गए

    कितनी दुनियाओं से कितनी दुनियाओं तक गर्द के बावजूद

    नक़्श से आइने में ठहरते गए दिन गुज़रते गए

    बिछ गई एक शब चार-सू इक बिसात-ए-हवा और हम

    अपनी हर साँस पर साँस हरते गए दिन गुज़रते गए

    जिस क़दर ख़्वाब थे मट-मिले पानियों में बहे और फिर

    दिल तराई में 'अतहर' उतरते गए दिन गुज़रते गए

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