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हम्द का तराना

MORE BYमोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर

    जब रोज़ सवेरा होता है

    जब दूर अंधेरा होता है

    जब दुनिया के इस गुलशन में

    फिर नूर का फेरा होता है

    एक एक कली खिल जाती है और इक इक चिड़िया गाती है

    इस ऐसे सुहाने मंज़र में अल्लाह तिरी याद आती है

    अल्लाह तिरी याद आती है

    ये दुनिया रंग बदलती है

    फिर एक नई कल चलती है

    ये दुनिया है मैदान-ए-अमल

    इस कल से तान निकलती है

    हर ज़िंदा हस्ती इस की सदा पर कामों में लग जाती है

    इस ऐसे सुहाने मंज़र में अल्लाह तिरी याद आती है

    अल्लाह तिरी याद आती है

    खेतों पर दहक़ाँ जाते हैं

    खेती में जान खपाते हैं

    दिन-भर की सख़्ती सह सह कर

    आराम की राहत पाते हैं

    जब आस हरी खेती की उन को मेहनत पर उकसाती है

    इस ऐसे सुहाने मंज़र में अल्लाह तिरी याद आती है

    अल्लाह तिरी याद आती है

    हम नेक इरादे करते हैं

    सुस्ती बेकारी से डरते हैं

    हर रोज़ सदा आगे ही बढ़ें

    ऐसे जीने पर मरते हैं

    जब नेकी नूर का परतव बन कर चेहरों को चमकाती है

    इस ऐसे सुहाने मंज़र में अल्लाह तिरी याद आती है

    अल्लाह तिरी याद आती है

    जब हम सब पढ़ने आते हैं

    आपस में घुल-मिल जाते हैं

    जब सब के सब ख़ुश हो हो कर

    'नय्यर' का नग़्मा गाते हैं

    जब आपस की ये जोत सभी के सीनों को गरमाती है

    इस ऐसे सुहाने मंज़र में अल्लाह तिरी याद आती है

    अल्लाह तिरी याद आती है

    अल्लाह तिरी याद आती है

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