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नज़्म
नारा-ए-उर्दू
'असगर'-ओ-'अकबर'-ओ-'अहसन' की भी दम-साज़ हूँ मैं
जिस को 'तुलसी' ने बजाया था वही साज़ हूँ मैं
इज़हार मलीहाबादी
ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उस्लूब-ए-नज़्म-ए-'अकबर' फ़ितरत से है क़रीं-तर
अल्फ़ाज़ हैं महल पर मा'नी मकान पर हैं
अकबर इलाहाबादी
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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अब तक उसी रविश पे है 'अकबर'-ए-मस्त-ओ-बे-ख़बर
कह दे कोई अज़ीज़-ए-मन फ़स्ल-ए-बहार हो चुकी
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हश्र में आफ़्ताब-ए-हश्र और वो शोर-ए-अल-अमाँ
'असग़र'-ए-बुत-परस्त ने ज़ुल्फ़ का वास्ता दिया
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
ख़ुदा जाने कहाँ है 'असग़र'-ए-दीवाना बरसों से
कि उस को ढूँढते हैं काबा ओ बुत-ख़ाना बरसों से

