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ग़ज़ल
किसी के छूट जाने का उसे क्यों ग़म नहीं होता
तिरा दिल है कि पत्थर है कभी जो नम नहीं होता
अब्दुल मन्नान समदी
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ग़ज़ल
'मन्नान' कर रहा हूँ मैं अब दोस्तों को कम
हर रोज़ छोड़ता हूँ मैं दो-चार मतलबी
मन्नान क़दीर मन्नान
ग़ज़ल
बज़्म में वो बैठता है जब भी आगे सामने
मैं लरज़ उठता हूँ उस की हर अदा के सामने