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नज़्म
मुफ़्लिसी
दरिया में उन के मुर्दे बहाती है मुफ़्लिसी
बीबी की नथ न लड़कों के हाथों कड़े रहे
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मियाँ से बीबी हैं पर्दा है उन को फ़र्ज़ मगर
मियाँ का इल्म ही उट्ठा तो फिर मियाँ कब तक
अकबर इलाहाबादी
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नज़्म
ख़ुशामद
हक़ तो ये कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है
बी-बी कहती है मियाँ आ तिरे सदक़े जाऊँ
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
काले सफ़ेद परों वाला परिंदा और मेरी एक शाम
बी-बी की सेहनक, कोंडे, फ़ातिहा-ख़्वानी
जंग-ए-सिफ्फ़ीन, जमल और बदर के क़िस्सों
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
रेस्तोराँ
लम्बी लम्बी पलकें झपके इक शर्मीली बी-बी
बालों की तरतीब से झलके ज़ेहन की बे-तरतीबी