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नज़्म
ज़लज़ला
एक वो जिस को मयस्सर हों इमारात-ओ-नक़ीब
एक वो जिस को न हो फूँस का छप्पर भी नसीब
शकील बदायूनी
नज़्म
शब-बरात
मूँछें किसी की फुक गईं पलकें झुलस गईं
रखे किसी की दाढ़ी पे चिंगारी शब-बरात
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आज और कल
बेकसी गर्म निगाहों को झुलस देती है
दिल किसी शोला-ए-ज़रताब से फुक जाते हैं