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नज़्म
ज़िंदाँ की एक सुब्ह
लज़्ज़त-ए-ख़्वाब से मख़मूर हवाएँ जागीं
जेल की ज़हर-भरी चूर सदाएँ जागीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
यहाँ से शहर को देखो
यहाँ से शहर को देखो तो हल्क़ा-दर-हल्क़ा
खिंची है जेल की सूरत हर एक सम्त फ़सील
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
पोम्पिये
हुक्मराँ भी हैं, महल भी हैं, फ़सलें भी हैं
जेल-ख़ाने भी हैं और गैस के चेम्बर भी हैं
गुलज़ार
ग़ज़ल
ये जो मेल-जोल की बात है ये जो मज्लिसी सी हयात है
मुझे इस से कोई ग़रज़ नहीं मुझे दोस्ती की तलाश है
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
तुम ने लिक्खा है
इस से पहले कि मिरे इश्क़ पर इल्ज़ाम धरो
देख लो हुस्न की फ़ितरत में तो कुछ झोल नहीं
प्रेम वारबर्टनी
ग़ज़ल
ग़ुरूर-ए-जेहल ने हिन्दोस्ताँ को लूट लिया
ब-जुज़ निफ़ाक़ के अब ख़ाक भी वतन में नहीं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
मुद्दई' इल्म का है जेहल-ए-मुरक्कब ला-रैब
क़ौल फ़ैसल है फ़रामोश ये इरशाद न कर