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ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
मैं अपने शहर-ए-इल्म-ओ-फ़न का था इक नौजवाँ काहिन
मिरे तिल्मीज़-ए-इल्म-ओ-फ़न मिरे बाबा के थे हम-सिन
जौन एलिया
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
मिटाया क़ैसर ओ किसरा के इस्तिब्दाद को जिस ने
वो क्या था ज़ोर-ए-हैदर फ़क़्र-ए-बू-ज़र सिद्क़-ए-सलमानी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तब कहीं कुछ पता चला सिद्क़-ओ-ख़ुलूस-ए-हुस्न का
जब वो निगाहें इश्क़ से बातें बना के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
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ग़ज़ल
जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई
सर-ए-आम जब हुए मुद्दई' तो सवाब-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
आह वो मरदान-ए-हक़ वो अरबी शहसवार
हामिल-ए-ख़ल्क़-ए-अज़ीम साहब-ए-सिद्क-ओ-यक़ीं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
एक लड़का
कभी हम-सिन हसीनों में बहुत ख़ुश-काम ओ दिल-रफ़्ता
कभी पेचाँ बगूला साँ कभी ज्यूँ चश्म-ए-ख़ूँ-बस्ता
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ज़ौक़ ओ शौक़
सिदक़-ए-ख़लील भी है इश्क़ सब्र-ए-हुसैन भी है इश्क़!
म'अरका-ए-वजूद में बद्र ओ हुनैन भी है इश्क़!
अल्लामा इक़बाल
शेर
अभी कम-सिन हो रहने दो कहीं खो दोगे दिल मेरा
तुम्हारे ही लिए रक्खा है ले लेना जवाँ हो कर