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ग़ज़ल
मर्ग-ए-'जिगर' पे क्यूँ तिरी आँखें हैं अश्क-रेज़
इक सानेहा सही मगर इतना अहम नहीं
जिगर मुरादाबादी
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क़ितआ
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
अक़ाएद वहम हैं मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
अज़ल से ज़ेहन-ए-इंसाँ बस्ता-ए-औहाम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुझे जाना है इक दिन
अभी तो काएनात औहाम का इक कार-ख़ाना है
अभी धोका हक़ीक़त है हक़ीक़त इक फ़साना है