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नज़्म
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)
और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
तुम हो आपस में ग़ज़बनाक वो आपस में रहीम
तुम ख़ता-कार ओ ख़ता-बीं वो ख़ता-पोश ओ करीम
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं ख़फ़ा होते हैं
मिलने वाले कहीं उल्फ़त में जुदा होते हैं
मजरूह सुल्तानपुरी
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नज़्म
तराना-ए-हिन्दी
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
घरों की तर्बियत क्या आ गई टी-वी के हाथों में
कोई बच्चा अब अपने बाप के ऊपर नहीं जाता
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
बे-साख़्ता निगाहें जो आपस में मिल गईं
क्या मुँह पर उस ने रख लिए आँखें चुरा के हाथ
निज़ाम रामपुरी
नज़्म
बंजारा-नामा
जब पूँजी बाट में बिखरेगी हर आन बनेगी जान ऊपर
नौबत नक़्क़ारे बान निशान दौलत हशमत फ़ौजें लश्कर
नज़ीर अकबराबादी
शेर
अजीब लुत्फ़ कुछ आपस की छेड़-छाड़ में है
कहाँ मिलाप में वो बात जो बिगाड़ में है