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नज़्म
शिकवा
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
मिस्ल-ए-बू क़ैद है ग़ुंचे में परेशाँ हो जा
रख़्त-बर-दोश हवा-ए-चमनिस्ताँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कहाँ मेरे दिल की हसरत, कहाँ मेरी ना-रसाई
कहाँ तेरे गेसुओं का, तिरे दोश पर बिखरना