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नज़्म
शिकवा
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ख़िरद-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
बहुत दुख देगी तुम में फ़िक्र और फ़न की नुमू मुझ को
तुम्हारे वास्ते बेहद सहूलत चाहता हूँ मैं
जौन एलिया
नज़्म
चंद रोज़ और मिरी जान
जिस्म पर क़ैद है जज़्बात पे ज़ंजीरें हैं
फ़िक्र महबूस है गुफ़्तार पे ताज़ीरें हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अंदेशा
चूड़ियों पर भी कई तंज़ किए जाएँगे
काँपते हाथों पे भी फ़िक़रे कसे जाएँगे