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ग़ज़ल
क़मर जलालवी
नज़्म
होली
हर गाली, मिस्री, क़ंद-भरी, हर एक क़दम अटखेली का
दिल शाद किया और मोह लिया ये, जौबन पाया होली ने
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आओ फिर से दिया जलाएँ
वर्तमान के मोह जाल में आने वाला कल न भुलाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ